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जाओगे कहाँ

मुश्किलों से भागकर 
हौसलों से भाग कर
जाओगे कहां सनम
ज़िन्दगी से भागकर
हौसले भी कम नहीं
फासले भी कम नहीं
मंज़िलें बहुत हैं पर
रास्ते भी कम नहीं
मुश्किलें हज़ार हैं
मंज़िलें हज़ार हैं
दास्ताने इश्क के 
रास्ते हज़ार हैं
मुश्किलों से भागकर
हौसलों से भागकर
जाओगे कहां सनम
ज़िन्दगी से भागकर
जो शिकन थी चेहरे पे
अब वो मेरे दिल में है
अश्क जो थे आंखों में
अब वो मेरे दिल में हैं
क्या करें बताएं अब
कोशिशें तमाम कीं
रात कटी इस तरह
दूरियां तमाम कीं
मुश्किलों से भागकर
हौसलों से भागकर
जाओगे कहां सनम
ज़िन्दगी से भागकर




                स्वरचित ग़ज़ल

             पण्डित विजय उप्रेती

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4 Comments

बहुत ही बेहतरीन पंक्तियाँ 👌👌

Reply

Bahut vadhiya bhai

Reply

Ravi Goyal

02-Jul-2021 10:45 AM

Bahut badhiya 👌👌

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